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Wednesday, February 6, 2013

दोहा में यूएनएफसीसीसी का रुख कमजोर हुआ...

जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चुनौती से निपटने के लिए वर्ष 1992 में यूएनएफसीसीसी द्वारा आरंभ की गई प्रक्रिया दोहा आकर खत्म हो गई। यह मानव अस्तित्व पर मंडराते खतरे से निपटने का एक सहयोगपूर्ण और बहुस्तरीय प्रयास है जो पूरी तरह कानून सम्मत है। दोहा में यूएनएफसीसीसी का रुख कमजोर हुआ है.वर्ष 2009 में कोपेनहेगन जलवायु सम्मेलन के वक्त से ही और उसके बाद कानकुन, डरबन और अब दोहा में सीओपी बैठक में भी यही बात सामने आई है कि कुछ अहम मसलों पर विकासशील देशों के साथ काम करना एक कभी न खत्म होने वाली लंबी प्रक्रिया सरीखा है।

दोहा जलवायु की राह

दोहा में 26 नवंबर से 8 दिसंबर के बीच यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) यानी जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की संधि के मसौदे पर सभी पक्षों (सीओपी) का 18वां सम्मेलन हुआ। इसमें 8 फैसलों के एक दस्तावेज पर मुहर लगाई गई जिसे कतर के आयोजकों ने दोहा क्लाइमेट गेटवे यानी दोहा जलवायु की राह का नाम दिया। ये फैसले बाली योजना पर दोतरफा संवाद के निष्कर्ष के आलोक में हुए जिन्हें वर्ष 2007 में सीओपी-15 ने अनिवार्य बनाया था और जिसे जलवायु परिवर्तन पर एक गंभीर खतरे से निपटने के लिए बनाया गया था। जलवायु परिवर्तन पर अंतरशासकीय पैनल (आईपीसीसी) ने सिफारिश की है कि वर्ष 2020 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 1990 की तुलना में 25 से 40 फीसदी की कटौती की जाए ताकि इस शताब्दी के मध्य तक पृथ्वी के तापमान में 2डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होने से रोका जा सके।क्योटो प्रोटोकॉल की मियाद वर्ष 2020 तक ही है और उसके बाद नया समझौता अमल में आएगा। हालांकि अभी तक जो भी शपथ ली गई हैं, यदि उस पर ही पूरी तरह अमल किया जाए तो भी वर्ष 2020 तक 1990 की तुलना में उत्सर्जन में केवल 18 फीसदी की कमी आती। इस बीच अमेरिका क्योटो प्रोटोकॉल से बाहर ही रहा जबकि कनाडा और जापान ने दूसरी प्रतिबद्घता अवधि के लिए लक्ष्य का ऐलान करने से इनकार कर दिया।

यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन आॅन क्लाइमेट चेंज

1992 में ‘यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन आॅन क्लाइमेट चेंज’ बना था और तभी से जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों पर चर्चा शुरू हुई। पर बीस साल का समय अब खत्म होने के कगार पर है। इस दौरान जलवायु संकट से निपटने के लिए दोहा वार्ता को लेकर अब तक अठारह बैठकें चलीं। लेकिन अभी तक इन खतरों से निपटने के लिए किसी ठोस रणनीति पर क्रियान्वयन शुरू नहीं हो पाया है। विश्व मौसम संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, 1990 से 2011 के बीच कॉर्बन डाइ आॅक्साइड और तापमान में बढ़ोतरी करने और वातावरण में लंबे समय तक रहने वाली दूसरी गैसों की वजह से जलवायु की उष्णता में तीस फीसद इजाफा हुआ है।

1992 में युनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज बना था...

1992 में युनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज बना था और तभी से जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों पर चर्चा शुरू हुई।जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के मुद्दे पर कतर की राजधानी दोहा में आयोजित वार्ता सम्मेलन समाप्त हो चुका है। यह 18 वां मौका था जब दुनिया भर के देश कार्बन उत्सर्जन पर चर्चा के लिए जुटे थे. दोहा में क्योतो प्रोटोकॉल की अवधि बढ़ाने पर सहमति बन गई, जिसके माध्यम से 2020 तक कुछेक धनी देशों में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित किया जाएगा।करीब 200 देशों ने क्योतो प्रोटोकॉल को अगले आठ साल तक कायम रखने पर सहमति जताई। लेकिन यह समझौता कुछ ही देशों पर लागू होगा, जो दुनिया की कुल ग्रीनहाउस गैसों का 15 प्रतिशत उत्सर्जन करते हैं।

Wednesday, September 26, 2012

जलवायु परिवर्तन

10 सितंबर 2012 को एक भारतीय कंपनी, अदानी पावर के अनुसार उनका एक बिजली संयंत्र जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त रांष्ट्र संघ रूपरेखा समझौते से कार्बन क्रेडिट प्राप्त विश्व का पहला कोयला आधारित तापीय प्रोजेक्ट बन गया है.