जैन धर्म में संसार को दुख्मुलक माना गया है ।
संसार त्याग और संन्यास ही व्यक्ति को सच्चे सुख की ओर ले जा सकता है ।
जैन धर के अनुसार सृष्टि करता इश्वर नही है ।
जैन धर्म में भी सांसारिक तृष्णा -बंधन से मुक्ति को निर्वाण कहा गया है ।
कर्म फल से मुक्ति के लिए त्रिरत्न का अनुपालन आवश्यक है ।
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