हमारा सारा ज्ञान एवं सारी योग्यताएं जिज्ञासा के बिना व्यर्थ हैं--रबींद्रनाथ टैगोर
Thursday, September 27, 2012
मन डोले मेरा तन डोले
मन डोले मेरा तन डोले
मेरे दिल का गया करार रे
ये कौन बजाये बांसुरिया
मधुर मधुर सपनों में देखी मैने राह नवेली
छोड़ चली मैं लाज का पहरा जाने कहाँ अकेली
चली रे मैं जाने कहाँ अकेली
रस घोले धुन यूँ बोले
जैसे ठंडी पड़े फुहार रे
ये कौन बजाये बांसुरिया
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